ऐसा क्या हुआ जो गाँधी जी ने छोड़ दी अदालत।

गाँधी जी जब नेटाल के डरबन बन्दरगाह पर उतरे तो जिस कंपनी के काम से वे वहां गए थे उसके मालिक दादा अबदुल्ला उन्हें लेने पहुंचे। अब चुकी गाँधी जी लंदन से कानून पढ़ कर आए थे तो उनका पहनावा भी अंग्रेजो की तरह ही था। वह जब जहाज से उतरे तो फ्राक कोट पहने हुए थे। बस दो ही चीजे उन्हें अंग्रेजो से अलग करती थी एक उनका रंग दूसरी उनके माथे पर बँधी पगड़ी। हिन्दुस्तानी सभ्यता के अनुसार गाँधी जी उन दिनों अपने सर पर पगड़ी बाँधा करते थे। अंग्रेजी पोशाक मे होने की वजह से दादा अबदुल्ला गाँधी जी को पहचान नहीं पाए और गाँधी जी ने भी उन्हें नहीं पहचाना। लेकिन जब पहचाना और एक दूसरे से मिले तो गाँधी जी का अंग्रेजी सूट - बूट देख कर दादा अबदुल्ला धीरे से अपने मित्र के कान में फुसफुसाए कि मुझे नहीं पता था मुझे एक सफेद हाथी पालना होगा। यह बात गाँधी जी ने सुन ली लेकिन कुछ कहा नहीं। 
डरबन पहुचने के दो तीन दिन बाद ही दादा अबदुल्ला कंपनी के एक मामले की सुनवाई होनी थी तो दादा अबदुल्ला गाँधी जी को भी अपने साथ ले गए। अदालत में भी गाँधी जी उसी पोशाक में सर पर पगड़ी बाँध कर गए थे। अदालत में पहुचते ही न्यायाधीश ने उन्हें गोर से ऊपर से नीचे तक देखा और थोड़ी देर बाद उन्हें अपनी पगड़ी उतारने का आदेश दिया। यह बात गाँधी जी को अपने आत्मसम्मान के विरूद्ध लगी। उन्होंने न्यायाधीश से कुछ तर्क वितर्क करना चाहा लेकिन इस पर न्यायधीश ने बिगड़ते हुए कहा कि या तो आप पगड़ी उतार दे या अदालत से बाहर चले जाए। हिन्दुस्तान में पगड़ी का एक अलग ही महत्व होता है यहा पगड़ी एक व्यक्ति की इज़्ज़त उसका सम्मान मानी जाती है। अपनी संस्कृति वा आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए पगड़ी उतारने के बजाय उन्होंने अदालत से बाहर चले जाना उचित समझा। बाद में जब दादा अबदुल्ला से गाँधी जी ने इस विषय में चर्चा की और पूछा कि आपने भी तो पगड़ी बांधी थी तो मुझे ही पगड़ी उतारने को क्यों कहा गया। इस पर दादा अबदुल्ला ने कहा कि सिर्फ अरबी लोगों को ही पगड़ी बाँध कर अदालत में जाने की इजाजत होती है। हिन्दुस्तानियों को नहीं। इसीलिए नेटाल का हिन्दुस्तानी मुसलमान अपने आप को अरबी कहा करता था। और हर हिन्दुस्तानी कूली कहलाता था। फिर चाहे वह पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ वह अंग्रेजो की नजर में कुली ही था। 

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