दक्षिण अफ्रीका में क्यों ट्रेन से फेंक दिये गए थे महात्मा गाँधी?


गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका एक साल के करार नामे पर दादा अबदुल्ला कंपनी मे काम करने गए थे। नेटाल पहुचने के कुछ दिन बाद दादा अबदुल्ला को उनके वकील मी. बेकर जो प्रिटोरिया मे उनका एक मुकदमा देख रहे थे का पत्र मिला जिसमें उन्होंने मामले से संबंधित जानकारी लेने के लिए स्वयं दादा अबदुल्ला या उनके किसी प्रतिनिधि को वहा भेजने की बात कही। अब चुकी गाँधी जी एक बैरिस्टर थे तो दादा अबदुल्ला ने उन्हें ही भेजने का निर्णय लिया। उन्होंने गाँधी जी को बताया कि तुम्हें प्रिटोरिया जाकर वहा चल रहे मामले को समझने में मी. बेकर की मदद करना होगी। गाँधी जी जाने के लिए तैयार हो गए। दादा अबदुल्ला ने उनका फर्स्ट क्लास का टिकट करवा दिया और स्टेशन तक छोड़ने गए। दादा अबदुल्ला ने फर्स्ट क्लास का टिकट तो करवा दिया लेकिन कुछ असमंजस में थे। फिर पूरा डिब्बा खाली देख कर कुछ राहत की साँस ली। क्योंकि नेटाल मे हर हिन्दुस्तानी व्यक्ति को कुली कहा जाता था फिर वह पढ़ा लिखा हो या अनपढ़। उन्हें फर्स्ट व सेकंड क्लास मे सफर करने का अधिकार नहीं था। वे सिर्फ वेन (समान्य कोच) मे ही सफर कर सकते थे। वहा के गोरे लोगों के मुताबिक हर काला व्यक्ति कुली होता था। वे कुलियों को गंदे व महिलाओ पर अत्याचार करने वाले समझते थे।
शाम के 7 बजे डरबन स्टेशन से गाड़ी निकलीं तो गाँधी जी ने सोचा एक आध व्यक्ति और होता तो सफर आसानी से कट जाता। रात के 9 बजे गाड़ी नेटाल की राजधानी पीटरमेरिट्जबर्ग पहुंची। स्टेशन पर कुछ एक लोग ही थे। थोड़ी देर में एक गौरा आदमी उनके डिब्बे में आया। गाँधी जी ने सोचा चलो एक से भले दो। गोरे ने अपना सामान रख कर इधर-उधर नजर घुमाई तो उसकी नजर गाँधी जी पर पडी। गाँधी जी को देखते ही गौरा झट से डिब्बे से उतर गया। गाँधी जी को लगा कि कुछ सामान लेने गया होगा। थोड़ी देर बाद वह गौरा रेल्वे के दो अफसरों के साथ लौटा। उनमे से एक दरवाजे पर ही रुक गया तथा दूसरा गाँधी जी के पास आया और कहा तुम इस डिब्बे में केसे आए अभी अपना सामना उठाओ और वेन मे जाकर बैठो। इस पर गाँधी जी ने कहा कि मैं एक बैरिस्टर हूँ। इसपर अफसर ने कुछ डाट कर कहा तुम जो कोई भी हो सबसे पहले कुली हो और कुली फर्स्ट क्लास में यात्रा नहीं कर सकते। तो गाँधी जी ने कहा कि मेरे पास फर्स्ट क्लास का टिकट है और यह मेरा अधिकार है मै नहीं उतरूंगा। इस बार गोरे अफसर ने भड़कते हुए कहा कि देखो चुपचाप उतर जाओ वर्ना मुझे तुम्हें धक्के मरकर निकालना होगा। इस पर गाँधी जी ने कहा कि आप चाहें तो एसा कर सकते है पर मै अपने आप से नहीं उतरूंगा। एक काले व्यक्ति को इस तरह बात करते हुए देखकर गेट पर खड़े अफसर ने एक सिपाही को बुलाया और गाँधी जी को घसीटते हुये सामना सहित गाड़ी से बाहर फिकवा दिया। और उनका सामान भी ज़ब्त कर लिया कुछ देर बाद गाड़ी भी निकल गई। गाँधी जी पीटरमेरिट्जबर्ग के स्टेशन पर रात भर ठंड में ठिठुरते रहे। इस घटना के दूसरे दिन उन्होंने दादा अबदुल्ला को पत्र लिख कर घटना की जानकारी दी। दादा अबदुल्ला ने तुरंत पीटरमेरिट्जबर्ग के कुछ साथियों को ईल्तला कर उन्हे गाँधी जी से मिलने पहुंचाया एवं खुद रेल्वे विभाग जाकर अधिकारियों से बात की। दादा अबदुल्ला कंपनी नेटाल की सबसे बड़ी हिन्दुस्तानी कंपनी थी। दादा अबदुल्ला को पूरा नेटाल जानता था। उन्होंने रेल्वे अधिकारियों से बात कर अगली ही ट्रेन से गाँधी जी का फर्स्ट क्लास में जाने का इंतजाम करवाया।

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